भारत में प्रत्यक्ष विदेषी निवेष-1990 से 2007 तक भौगौलिक कारकांे का विष्लेषणात्मक अध्ययन

 

डाॅ. मनोज सिंह

व्याख्याता, एस.एस. महाविद्यालय, नगला सेवा कुरवारिया, बयाना, भरतपुर (राज.)

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1990 के पष्चात् प्रत्यक्ष विदेषी निवेष के कारण राज्यों के बीच आर्थिक वृद्धि में असन्तुलन बढ़ा हैं। अर्थात् वृद्धि दरों में पर्याप्त अन्तर रहा हैं। प्रस्तावित अध्ययन में बताया गया हैं। प्रस्तावित शोध पत्र द्वितीय संमको पर आधारित हैं। रिजर्व बैंक इंडिया, वाणिज्य मंत्रालय भारत सरकार, भारतीय अर्थव्यवस्था मूल्यांकन केन्द्र आदि से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश समवन्धी आंकड़े संकलित किये हैं। इसके साथ ही 1990 से 2007 तक की अवधि का अध्ययन भी किया गया हैं। इसके अलावा तुलनात्मक विवेचन के लिए 1985 से 1990 की अवधि के आंकड़ो का विष्लेशण भी किया गया हैं तथा वार्षिक औद्यौगिक सर्वेक्षण, योजना आयोग के आधारभूत संरचना विकास संबंधी आॅकड़ों को संकलित किया हैं। आॅकड़ो का विश्लेषण हेतु साॅख्यकीय एवं मानचित्रीय विधियों का प्रयोग किया गया हैं। वृद्धि दरें ज्ञात करने के लिए प्रतीपगमन विश्लेषण का प्रयोग किया हैं। विदेशी निवेश के क्षेत्रीय अन्र्तप्रवाह के निर्धारण कारकों को पहचानने के लिए बहुगामी कारक विश्लेषण विधि का प्रयोग किया गया है। साथ ही सह सम्बन्ध विधि द्वारा भौगौलिक आर्थिक कारकों का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ संबंध व्याख्यायित किया गया हैं।

 

ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू  भौगौलिक कारक, विदेशी निवेश

 

 

 

 

 

प्रस्तावनाः-

प्रस्तुत अध्ययन भारत में विदेशी पूंजी के पिछले 1990-2010 विदेशी पूंजी के अन्र्तप्रवाह की प्रवृत्ति के विश्लेषण से संबंधित हैं। प्रस्तुत अध्ययन में विदेशी पूंजी किस स्थान पर रही हैं और किस देश रही हैं। इसको आधार मानकर पूंजी के स्थानीयकरण के प्रारूप को व्याख्यायित किया गया हैं। विदेशी पूंजी का आगमन किन कारकों से प्रभावित होता हैं। इससे विश्लेषित किया गया  हैं। साररूप में अध्ययन का तथ्य भौगौलिक दृष्टि से विदेशी पूंजी के स्थानीयकरण को व्याख्यायित करना रहा हैं।

 

अतः विदेशी पूंजी के आर्थिक एवं सामाजिक पक्षों को अध्ययन में सम्मिलित नहीं किया गया हैं।

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(कार्य क्षेत्र) वार विष्लेशण

भारत जनसंख्या वृद्धि वाला दूसरा देश है और विश्व का एक बड़ा लोकतांत्रिक देश हैं। भारत ने दूर पहॅुच वाले और पूंजी इकट्टा करने वाले सुधारों के आर्थिक वृद्धि के रास्ते खोले यहाँ तेज सोच समझ से नियम के विपरीत उदारीकरण को अपनाया जिससे यह परिणाम निकला कि भारत विदेशी निवेशों का एक प्रसिद्ध लक्ष्य बन गया।

 

भारत एक निवेश लक्ष्य के तौर पर -

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश घरेलू निवेश का पूरक दिखाई देता है। आर्थिक वृद्धि और विकास के ऊँचे स्तर के उठाने के लिए।

 

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का (घरेलू उद्योग और भारतीय ग्राहक) दोनों को ही फायदा है जो कि तकनीक को ऊँचा उठाने के लिए मौका देता है। विश्व की प्रबंधक व्यवस्था की दक्षता और मनुष्य शक्ति की ज्यादा से ज्यादा उपयोगिता और कुदरती साधनों की जिससे कि भारतीय उद्योगों को विश्व मुकाबला के लिए बनाया जाये और निर्यात बाजार को खोला जाए जिससे पिछले और आगे का सम्बन्ध हो, विष्व स्तर का सामान और सेवा तक पहुँच हो कई देशो के लिए भारत व्यापार के लिए लोकप्रिय लक्ष्य है। सारे विश्व से व्यापारी लोगों के लिए, जबकि बाकी विश्व के देश लड़ाई से बरबाद थे। भारत ने अपनी स्तरता प्राप्त के लिए शान्तिपूर्वक संघर्श किया और 1947 में दुनिया का लोकतांत्रिक बन गया।

 

6 दशक के बाद भारत ने बाकी की दुनियाँ में अपने आप को जोड़ा। भारत की अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण की अर्थव्यवस्था है और उसने अपने दरवाजे सामान सेवा, पूंजी, तकनीकी ज्ञान, के लिए खोले। भारत सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और पोर्टफोलियों निवेश को आकर्शित करने के लिए सम्भव तरीका अपनाये। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की नीति को सदा पुनरावलोकन किया। और भारत ने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को अपनाने के लिए आवष्यक कदम उठाये।

 

भारत में निवेश के लिए कई अच्छे कारण हैं जैसे

1.       दक्षता व्यक्ति शक्ति दुनियाँ में तीसरे दर्जे पर हैं।

2.       सारे देश में बड़ा और भिन्न-भिन्न आधारिक संरचना विकास फैला हुआ हैं।?

3.       प्रकृति साधन का ज्यादा होना और कृषि में आत्म निर्भर होना।

 

4.       विदेशी निवेशकों के लिए वित्तीय प्रेरणा का पैकेज होना।

5.       बड़ी और जल्दी बढ़ने वाली ग्राहकी बाजार।

6.       लोकतांत्रिक सरकार में न्यायापालिका स्वतंत्र हैं।

7.       अंग्रेजी व्यापार की पसन्द भाषा है और विकसित वाणिज्यक बैंकिंग का नेटवर्क 63 हजार शाखाओं से ज्यादा है जिन को राज्य के वित्तीय संस्था और काम के दूसरे शाखाओं की पूरी सहायता हैं।

8.       कम्पायमान पूंजी बाजार है जिसकी 23 स्टाॅक एक्सचेंज जिनमें 9400 सूचीबद्ध कम्पनी हैं।

9.       दोनों का अनूकूल विदेशी निवेश के पर्यावरण में प्रवेश की आजादी देता हैं और निवेश की स्थिति की, तकनीक के चयन की, आयात-निर्यात की और पाकिस्तान, भूटान और बंगलादेश, मालदीव और नेपाल, श्रीलंका तक बाजार की पहुँच आसान हैं।

 

कुल निवेश, घरेलू और विदेशी को आने वाले भविष्य के लिए फायदेमंद आंशाए हैं। आर्थिकता में लाभ होता है यदि आर्थिक नीति में प्रतिस्पर्धा और उसमें आधुनिक नियमित प्रणाली को बनाने की इच्छा शक्ति हो। सरकार की सीमा प्रवेश प्रणाली की जो एकाधिकार के होसलें को बढ़ावा देता

 

एक पहचान और समझ वाला सकारात्मक दृष्टिकोण से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का ज्यादा प्रवाह हुआ।

 

भारत की स्वतंत्रता से पहले का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश -

जब ईष्ट इंड़िया कम्पनी भारत आयी उसने परिणाम के तौर पर बहुत बड़ा हिस्सा आर्थिक कारक का अपने नियन्त्रण में किया राजनीति के विपरीत और आर्थिक शोषण की नीति थी। वो चोट करने वाले उसी ही उत्साह से सारे ब्रिटिश शासन में उसी जोश से जारी रखा। भारत एक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए एक मेजबान था जो उस राज्य की बाकी बस्तियों से बहुत ज्यादा थी जब 1947 में इसे स्वतंत्रता मिली

 

भारत की आजादी के पूर्व का पूंजी निर्गम

 

 

भारत के स्वतंत्रता के बाद का विदेशी प्रत्यक्ष निवेशः

भारत सरकार ने राज्य को आर्थिक क्षेत्र में दखल देने की नीति बनाई ताकि पूजीप्रति माल अभ्यास कर सकें, विदेशी राज्य में पूंजी छोड़ी गई, नीति निर्माता को विदेशी पूंजी के प्रति शक था।

 

भारत की स्वतंत्रता में यह दिमाग छाया हुआ था कि आजादी को कायम और इकट्ठा रखा जायें किसी भी विदेशी का प्रभुत्व आर्थिक और राजनीतिक पर हो।

 

भारत सरकार ने 1947 में विदेशी विनिमय अधिनियम धारा बनायी जिससे रिजर्व बैंक आफ इंडिया को यह सौपीं गई कि कुछ मामलों में सरकार ने विदेशी विनमय के भुगतान को भारत के बाहर की अधिनियम किया, मुद्रा के नोटों का आयात निर्यात और सोना में भी काम चलता है। सुरक्षा का स्थानान्तरण अनिवासी और निवासी, विदेशी सुरक्षा की उपलब्धि के लिए आदि-आदि।

 

योजना आर्थिक विकास की प्रक्रिया अप्रैल 1951 से (5 वर्षीय योजना) चालू की गई जबकि विदेशी पूंजी को वृद्धि का एक प्रभावित संघटक समझा जाता है और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की नीति चुनी हुई थी और पहले  5 वर्ष योजना में विदेशी पूंजी का स्वतंत्र प्रवाह को आमंत्रित किया क्योंकि यह पूंजी सामान और तकनीकी जानकारी लाने के लिए जरूरी था। सरकार ने विदेशी निवेशकों को निम्न बीमा दिया।

 

विष्व की अर्थव्यवस्था का अविष्वास, ब्रिटेन वुड़ योजना जो स्थिर विनियम दर था इसके टूट जाने से तैरता हुआ शासन में तात्कालिक आया। 1973 और 1974 में तेल के झटले की वजह और भी खराब हो गया जिसने विनियम दर व्यवस्था को बड़ी चुनौती दी जिससे भारत में भुगतान करने के लिए बहुत परेशानी आयी इसी तरह विकासशील देशों में भी।

 

नीचे दी गई सिफारिशों के नजरिये से सार्वजनिक खाता समिति की सिफारिशें जो विदेशी विनिमय के रिसाव से सम्बन्ध रखती हैं जिनमें बीजक के प्रबन्ध में जून 1971 में हैं। और कानून कमीशन कमीशन की सूचना जो आर्थिक और सामाजिक जुर्मों की परीक्षण और दण्ड़, अप्रैल 1972 में भारत सरकार ने 1947 फेरा का पुररावलोकन किया ताकि विदेशी विनियम सुरक्षित किया जाये कि विदेशी पूंजी की प्रवेश को नियमित किया और 1973 में फेरा का कानून बना दिया गया। भारत सरकार की नीति प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करने के लिए जो परिवर्तन जरूरी था वो किया गया। पहले कानून में परेशानी आती वो दूर की और चालू खाता के लेन देन में बहुत ज्यादा रोक लगायी रखी 1990 से आज तक जब इस कानून के शल्यक्रिया में ढील दी गई ताकि चालू खाते में बदलाव हो सके।

 

विदेशी निवेश के समवन्य में जो नीति उसमें न् मुड़ाव गया। तीसरे और चैथे (5 वर्ष) योजनाओं में विदेशी विनिमय की सुरक्षा की रोक के कारण और इस बात का ध्यान रखा गया कि विदेशी सहयोग को दुबारा शरण में लाया गया ताकि आलोचक अन्तराल का मुकाबला किया जा सके और घरेलू कारीगरी और सेवा में रूकावट विदेशी सहयोग जो ग्राहक के उत्पादन में हैं। चाहे वो देश में उत्पन्न की जाये और देश में उगाई जाये या उनको आज्ञा नहीं दी गई जब तक कि विदेशी निर्यात का उसमें रूचि हो सहयोग की दिशा निर्देश मंे देशी कोशिश से थोडे समय के लिए सेवा और माल या उसका कोई बदलाव उसकी आज्ञा नहीं दी गई। यह योजना की गई कि विदेशी सहयोग को एवं योजनाबद्ध को एक शख्त परीक्षण होना चाहिए और विदेशी कारीगरी को जो खासकर पेचीदा उद्योग क्षेत्र में जरूरी समझा गया और जानने के लिए विदेशी सहयोग की किन क्षेत्रों मे जरूरत है। मंजूरी की प्रक्रिया है उसको नदी रेखा से सहयोग किया जाए। नदी रेखा मंजूरी के लिए किया जाए या विदेशी सहयोग की प्रस्तावों को और एक विदेशी निवेश बोर्ड बनाया गया।

 

ऊपर वाली नीति 1980 तक अच्छी तरह चलती रही जिसमें संरचना संतुलन को भुगतान पैदा किया। 1980 के अन्तराल में देश ने विदेशी निवेशों का नियन्त्रण करना शुरू किया अपनी अर्थव्यवस्था को खोलना शुरू कर दिया और अपने व्यापार शासन को उदारीकरण करना शुरू कर दिया। विदेशी निवेशों को सीधे प्रोत्साहन के लिए और थोड़े समय के लिए मौद्रिक सहायता दी गई ताकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। इस रिपोट का यह आकार है कि कर संरचना को प्रत्यक्ष निवेश और पोर्टफोलियों निवेश को अनुकूल किया जाए। विदेशी निवेश की प्रगति जबकि भारत मे शुस्त थी। 1948-49 से 1989-90 तक।

 

भारत में विदेशी सहयोग स्वतंत्रता के बाद

 

 

 

भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेशः सुधार के प्राप्ति के बाद का समय:

भारत की आर्थिक नीति के जो सुधार है 1990-91 के ऐतिहासिक आर्थिक संकट के बाद जो अपनाये गये और खास परिवर्तन वैश्विक आर्थिक ढाँचे में जो हुआ उसने भारत की सारी अर्थव्यवस्था को बदल दिया जो 1991 से था। दूसरी बातों में सुधारों ने अर्थव्यवस्था को खोला और इसे प्रतिस्र्पधित बनाया। सरकार को अधिनियम के कीचड़ से बाहर निकाला और जिससे राज्य को ज्यादा शक्ति और जिम्मेदारी आर्थिक प्रबंधक की दी। विदेशी निवेशकों को लाने के लिए 1 किस्म का राज्यों में प्रतिस्पर्धा हो गई। जुलाई 1991 से सरकार लगातार ऐसी नीति का पीछा कर रही है। जिससे विदेशी निवेश का बहुत ज्यादा पुस्तक खण्ड आकर्शित हो और बहुत सारी नीतियाॅ और ढंग अपनाये गये प्रत्यक्ष निवेश और विदेशी निवेश, विदेशी निवेशकों को आकर्शित करने के लिए व्यक्तिगत तौर पर सहकारिता पहचान और विदेशी संस्थागत निवेशक निवेश बाद वाले सालों में उदारीकरण के ढंग नयी आर्थिक नीति में हो और इससे आगे इस नीति के शासन में उदारीकरण को अन्दर से देखा गया जो विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के समबन्ध में था और नयी विदेशी निवेश नीति को जगह दी गई जिससे विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का जो अनुमोदन तीन प्रकार का अपनाया गया

 

1.       रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया का स्वचालित अनुमोदन प्रणाली।

2.       सचिवों का औद्योगिक अनुमोदन जो रिवर्ज बैंक आॅफ इण्डिया के अधिकार शक्ति उससे बाहर प्रस्ताव के लिए।

3.       विदेशी निवेश तरक्की बोर्ड यह एक विशेष गठन बनाया गया जो विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को आमंत्रित करता है और उनसे बातचीत करती है उनको सुविधा देती है।

 

भारत में विदेशी निवेश प्रवृत्ति:

जो वार्षिक अन्तप्र्रवाह विदेशी निवेश को आयी तालिका 43 में तुलनात्क स्थिति दिखाई गई है और पोर्टफोलियों निवेश की तालिका से देखा जाता है। 1990-91 विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अन्तप्र्रवाह था न्ण्ैण्।ण् का 97 मिलियन डालर, जबकि उससे तुलना न्ण्ैण्।ण् का सिर्फ 6 मिलियन था। जबकि विदेश प्रत्यक्ष निवेश बढ़कर 129 मिलियन डालर और पोर्टफोलियों निवेश घटकर 4 मिलियन डालर 1991-92 रहा फिर भी 1992-93 के बाद पोर्टफोलियों निवेश में बहुत अधिक वृद्धि हुई वो 3,824 मिलियन डालर 1994-95 में उसकी तुलना 1,314 मिलियन डालर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का था तालिका 4.3 भारत में विदेशी निवेश का अन्तप्र्रवाह की प्रवृत्तियों न्ण्ैण्।ण् के मिलियन डालर में।

 

भारत में विदेशी निवेश का अन्र्तप्रवाह की प्रवृत्तियां

मिलियन में)

 

1998-99 में पोर्टफोलियो निवेश में एक दम गिरावट आयी और वो नकारात्मक बन गया। (1998-99- असाधरण वर्ष) और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश भी घटा लेकिन वो सकारात्मक रहा जबकि 1999-2000 में दोनो ही (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और पोर्टफोलिया निवेश) में लगातार वृद्धि हुई। 2001-02 में 6130 मिलियन और 2021 मिलियन सम्मानित रहा 2007-08 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और पोर्टफोलियों निवेश में रिकार्डपूर्ण वृद्धि हुई। 2008-09 के साल में सारी दुनिया में ऐतिहासिक आर्थिक तौर से घट गया और भारत में भी।

 

ठण्ैण्म्ण् ैन्छैम्ग् बहुत तेजी से घटा और 10,000 के नीचे रिकार्ड किया गया जबकि इसका सबसे ऊॅचा स्तर 21,000 था। इसके परिणामस्वरूप पोर्टफोलियो निवेश का बाहरी प्रवाह होने लगा और यह 13885 मिलियन डालर था और चार्ट 4.1 में विदेशी निवेश भौगौलिक प्रवृत्ति दिखाई है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अन्र्तप्रवाह की बढ़ोत्तरी और पोर्टफोलियो निवेश की दिखाई गई जबकि 1990-91 से 2007-08 में एक जैसी प्रवृत्ति दिखती हैं। दोनों ही सालों में कम गति से 2002-03 और इसके बाद बढी और 2007-08 में उच्च प्रवृत्ति देखी गई जब दोनों ही (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और पोर्टफोलियो निवेश) सिरे पर पहुॅच गये। और पोर्टफोलियों निवेश की तीखी गिरावट आयी जबकि विष्व में इसके पिघल जाने के कारण हुआ पोर्टफोलिया निवेश का 13,855 मिलियन जबकि छमज अन्र्तप्रवाह विदेशी निवेश का 19785 मिलियन डालर था।

 

2008-09 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का कुल अन्र्तप्रवाह 25 हजार मिलियन डालर से ऊपर बढ़ गया। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इसका फायदा उठाया। देश में खुशहाल ग्राहक बाजार ज्यादा हैं और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश जो प्रवृत्ति है वो वृद्धि प्रारूप में दिखाई गई।

 

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कुल में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अन्र्तप्रवाह त्र सवहं सवहण्इ˄

 

भारत में 1990-91 से 2008-09 तक में कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश

 

 

कुल में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अन्र्तप्रवाह ˄त्र

 

विश्लेषणः

(1)     यहाँ 2 त्र 0ण्8642        इसका अर्थ है 86ण्42 प्रतिशत का समझाना जो कि समय के परिवर्तन पर निर्भर है जो समय के परिवर्तन से निर्भर है।

(2)     त्र 3ण्70086 इसका अर्थ है यदि समय त्र 0  कीमत कुल विदेशी प्रत्यक्ष का अन्र्तप्रवाह 3ण्70086 है। इसका ज्.परीक्षण कीमत वह है 42ण्97 जो कि तालिका कीमत है। उससे ज्यादा ˄ त्र 2ण्110इसका यह परिणाम हुआ। इसका मतलब है जो अन्र्तरोधन सत्र महत्वपूर्ण है। स्तर 5 पर। 

(3)     यहाँ त्र0ण्11136 इसका अर्थ है कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के अन्र्तप्रवाह में 0ण्1136 की बढ़ोत्तरी, जबकि समय की एक इकाई की परिवर्तन में अनुपात को दिखाता है। इसका . परीक्षण कीमत 7ण्083 है। जबकि तालिका की हुई कीमत से बढ़ा है। तालिका जत्र2ण्110 हैं इसका परिणाम है। पीछे हटने का गुणांक महत्वपूर्ण है। उसका स्तर 5 प्रतिशत है।

 

परिकल्पना परीक्षण

 

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स्तर का महत्व त्र 0ण्05

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इसका परिणाम यह है कि भ्0 अस्वीकार है और  महत्वपूर्ण है -

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वृद्धि दर प्राप्त करने के लिए:

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वृद्धि दर

 

इससे यह परिणाम निकलता है 29ण्22 वृद्धि कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अन्र्तप्रवाह समानुपात समय के प्रति इकाई की परिवर्तन हैं।

 

निष्कर्ष और सुझाव

निष्कर्ष:

विदेशी निवेश की उदारीकरण नीति और व्यापार सुधार में और औद्यौगिक क्षेत्र में विदेशी निवेश की भारतीय जलवायु में एक समुद्री परिवर्तन आया है विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का कुल अनुमोदन निवेश (1991-1994) में न्ण्ैण्।ण् का 7.2 मिलियन पर खड़ा था यदि इसके विपरीत का मिलियन 1 डाॅलर 1980 के में था जैसे अनुमोदन के विरूद्ध जो शुद्ध प्रवाह प्रत्यक्ष निवेश का, न्ण्ैण्।ण् का 2.8 मिलियन 1991-95 में था।

 

भारत एक प्रगतिशील देश है संयुक्त अर्थशास्त्र उदारीकरण का प्रस्ताव 1991 से प्रारम्भ किया हैं। वास्तविक परिणाम निकला हैं। मुद्रा स्फीति गिर गई हैं, ळक्च् में ज्यादा वृद्धि हुई जिसके कारण प्रशसनीय रही, आयात में वृद्धि हुई, वेतन के सन्तुलन की व्यवस्था भी आरामदायक हैं और औद्योगिक कृषि के क्षेत्र में अच्छे परिणाम निकले हैं। और विदेशी निवेश के लिए आदर्शकीय वातावरण बना है और निवेशकों ने सकारात्मक सम्मान किया जो देश ने 40 सालों में नहीं पाया इससे 4 सालों में ज्यादा पाया हैं।

 

फिर भी देश जो शक्तिशाली अर्थव्यवस्था अभी भी दुनिया को वेचनीय हैं, जबकि एशिया के कुछ देशों ने इससे पहले से ही प्रारम्भ कर दिया है इस दौड में भारत इसमें बाद में प्रारम्भ करने वाला है ये जो अन्तर्राष्ट्रीय बाजार की प्रतिस्पर्धा में स्थान बनाने के लिए भारत को अपनी नीतियाँ उचित परिप्रक्ष्य में बनानी पडे़गी। और विदेशी निवेशकों के लिए अनुकूल वातावरण बनाना पडे़गा।

 

भारतीय आर्थिक नीति जो बाजार आधार मैकनिज्म नीति में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ हैं उससे उसको व्यवहार के निवेशकों ने भली-भाँति स्वीकार किया हैं। संस्थागत जो भारत पीछे रहा अब वह पूरे उत्साह से सम्मान करता है प्रत्यक्ष निवेश में धक्का लगाता हैं। और थ्च्प् को भारत में आगे धकेलता हैं जबकि वो आशावादी होने के साथ-साथ वह नीति के सुधार को भी वहीं स्थान देता हैं। यदि भारत अपनी आर्थिक सुधारों को कायम रखता है और नियंन्त्रण और आदेश अर्थव्यवस्था में वो स्वीकार वाला मामला शिफ्ट करता है जो अनियमित और स्वतंत्र बाजार व्यवस्था और यदि संरचना रूकावटें हटा लेता हैं निवेश से तो अर्थव्यवस्था में पक्के तौर पर विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ेगा, यह एक कहावत कि भारत में पहली औद्योगिक क्रंाति खो दी क्योंकि यहाँ बस्तीवाद था तो इसने दूसरी औद्योगिक क्रंाति समाजवाद के कारण खो दी इसलिए देश को तीसरी क्रंाति बिल्कुल खोनी नहीं चाहिए जो कि अभी गतिशील हैं।

 

सुझावः

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को आकर्शित करने के लिए और तीव्र गति देश की ओद्योगीकरण के लिए भारतीय सरकार को चाहिए वो जानकारी पर कर मुक्त हो और लाभांश का कर दर कम किया जाया। आगे और उच्च स्तर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्शित करने के लिए भारत को औद्योगिक नीति का ढ़ाँचा दुबारा बनानी चाहिए।

 

विदेशी निवेश मेजवान की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में योगदान कई चैनलों से बढ़ा सकता हैं जैसे भौतिक सम्पदा निर्माण रचना में। इनमें तकनीकीकरण स्थानान्तरण मनुष्य की पूंजी विकास और व्यापार की तरक्की, विदेशी निवेश नीति की स्थानान्तरण से ही बढ़ता है उसका औद्योगिक क्षेत्र में, कुल निवेश क्षेत्र में अभी थोड़ा प्रतिशत ही स्थापित करना हैं। ़ऋण वाले पूंजी का ये मुख्य साधन होने से ये अति जरूरी है कि ऐसे कारणों की गहराई में जाया जाये जैसा कि सामान्य अन्र्तप्रवाह जो विदेशी निवेश की देश में होता हैं। विदेशी निवेशकों को निवेश के लिए जो सुधारक कदम उठाने हैं वो निम्नलिखित हैं-

 

1ण्      विदेशी निवेशक जो अमीर और विकासशील देश के है उनको आकर्शित करने के लिए भारत का जो भारतीय मिशन जो विदेश में है उसको देश की धारणा को ठीक ढ़ंग ऊँचा बनाना।

2ण्      विदेशी निवेशकों को अपने देश को लाभांश ओर लाभ और पूंजी अपने देश को भेजने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। इस सन्दर्भ में कानूनी प्रारूप जो दाखिल को खोलने की वकालात करें और भेजने की नीति विदेशी निवेशकों के लिए हो।

3ण्      प्राइवेट क्षेत्र में निवेश के लिए सहायक हो वहाँ पर अनुकूल और स्थिर बड़ी आर्थिक नीति चाहिए।

4ण्      यह एक बात साफ है कि सिर्फ विदेशी निवेशकों के लिए दरवाजा खोलने से ही भीड़ नहीं करेंगे। नई नीतियाँ उन्हें बेचनी चाहिए विदेशी निवेश को आकर्शित करने के लिए वास्तव में अच्छी होनी चाहिए आधे दिल से किये गये ढ़ग सिर्फ निवेश को सुखा देगे या वो थोड़ा-थोड़ा आयेगा जैसे 1990 में आया अपने देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को वृद्धि के लिए और सही दिशा में जाने के लिए कुछ निम्नलिखित दिये गये हैं-

 

विदेशी निवेश का प्रथम उददेष्य भारतीय औद्योगिक वैष्विक बराबरी वाला इसलिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को एक हथियार के तौर पर तकनीकी ऊँचा करने के लिए लेना चाहिए असल में विदेशी कम्पनियों की भारत में कई उदाहरण हैं। जिसमें बैंक, तकनीक स्तर पर क्रियाकलाप जो घर पर स्तर हो ऐसे दृष्य लेख में भारत लुप्त तकनीक का भूमि एकत्रित बन जायेगी इसलिए विदेश से जो सस्ती पुरानी औैर थोड़ी समय वाली मशीनरी आदि पर रोक होनी चाहिए। 

 

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Received on 19.12.2018                Modified on 23.01.2019

Accepted on 08.02.2019            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):87-93.